अधूरा सा अध्याय
साल 2003. सूरज की पहली किरणें स्कूल के बरामदे पर पड़ रही थीं, और उसी रोशनी में राहुल (25) अपनी पुरानी स्कूटी पर आया करता था। उसकी उम्र ज़्यादा थी, ज़िम्मेदारियों से लदी हुई, पर उसके चेहरे पर एक नादानी थी, जो सिर्फ़ उस वक़्त ही दिखाई देती थी जब वो शिखा (20) को देखता था। शिखा, कक्षा बारहवीं की एक चंचल, ज़िदगी से भरी लड़की, जिसके बाल हमेशा खुले रहते थे और हँसी हमेशा होंठों पर।
राहुल कॉलेज में पढ़ाता था, और शिखा उसकी छोटी बहन की क्लासमेट थी। पहली मुलाकात एक गलती से हुई थी – शिखा की बहन की किताबें राहुल के स्कूटर के पीछे गिर गई थीं। उस दिन राहुल ने शिखा की आँखों में एक अजीब सी चमक देखी थी, एक बचपन की मासूमियत, जिसने उसे मोह लिया था।
धीरे-धीरे दोनों के बीच एक अनकहा रिश्ता बन गया। राहुल, अपनी उम्र और ज़िम्मेदारियों के बावजूद, शिखा के साथ बचपन की तरह मस्ती करता था। वो उसे स्कूल छोड़ने आता, उसे उसके पसंदीदा मिठाई की दुकान पर ले जाता, और उसके साथ उसके पसंदीदा गीत गुनगुनाता। शिखा भी राहुल के साथ बेफ़िक्र थी, उसकी परिपक्वता उसकी नादानी में खो जाती थी।
लेकिन उनका रिश्ता आसान नहीं था। उम्र का फर्क, राहुल की ज़िम्मेदारियाँ, और शिखा के परिवार का रूढ़िवादी सोच, इन सब ने उनके रिश्ते पर हमेशा एक छाया डाली रखी। चुपके-चुपके मिलने, छिपे-छिपे बातें करना, और दूर से एक-दूसरे को देखकर मुस्कुराना, ये सब उनकी लव स्टोरी का हिस्सा बन गया।
एक दिन, शिखा के पिता को उनके रिश्ते का पता चल गया। हंगामे के बाद, राहुल को शिखा से दूर रहने को कहा गया। वो दूर रहा, पर उसकी आँखों में हमेशा शिखा की याद रही। वो उसे कभी-कभी दूर से देखता, और उसकी हँसी याद करता।
वक़्त गुज़रता गया। शिखा ने शादी कर ली, और राहुल अपनी ज़िंदगी में आगे बढ़ गया। लेकिन उनकी लव स्टोरी, एक अधूरा सा अध्याय बनी रही, जो उनके दिलों में हमेशा ज़िंदा रहा। एक ऐसी याद, जिसे वो कभी भूल नहीं सके।